“…एकता का वितान तान दिया गया है। तुम लोग एक-दूसरे को अजनबी मत समझो। तुम सब एक ही वृक्ष के फल और एक ही शाख की पत्तियां हो।”

– बहाउल्लाह

बहाई उपासना मंदिर मानवजाति की एकमेवता के प्रति समर्पित है। अपने एकमेव ’सृष्टिकर्ता’ (परमात्मा) से प्रार्थना करने के लिए सबका स्वागत करते हुए, वह इस महत्वपूर्ण सिद्धांत को सांकेतिक और क्रियात्मक रूप से झलकाता भी है।

यह दृढ़ विश्वास कि हम सब एक ही मानव-परिवार के अंग हैं, बहाई धर्म की मूल अवधारणा है। मानवजाति की एकमेवता का सिद्धांत “वह धुरी है जिसके चारों ओर बहाउल्लाह की समस्त शिक्षाएं घूमती हैं।”

बहाई धर्म के संस्थापक युगावतार, बहाउल्लाह, ने मानव-जगत की तुलना मनुष्य के शरीर से की है। इस जैविक संरचना के अंदर, विभिन्न रूपों में विभिन्न प्रकार के प्रकार्यों को पूरा करने वाली कोशिकाएं एक स्वस्थ प्रणाली को कायम रखने के लिए अपनी-अपनी भूमिकाएं निभाती हैं। इस शरीर को शासित करने वाला सिद्धांत है सहयोग। इसके विभिन्न अंग संसाधनों के लिए आपस में प्रतिस्पर्द्धा नहीं करते, अपितु उनमें से प्रत्येक कोशिका, अपने जन्म लेने के साथ ही, देने और ग्रहण करने की एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया से संयोजित होती है।

मानवजाति की एकमेवता के सिद्धांत को स्वीकार करने की मांग यह है कि हर तरह के पूर्वाग्रह—जातीय, धार्मिक या स्त्री-पुरुष सम्बंधी—को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए।