भवन-शिल्प

"हालांकि बाहरी तौर से देखने पर मश्रिकुल-अज़कार [बहाई उपासना मंदिर] “एक भौतिक संरचना है किंतु उसका एक आध्यात्मिक प्रभाव है। यह हृदयों के बीच एकता के बंधन की रचना करता है, यह मानव आत्माओं के लिए एक सामूहिक केंद्र है।”

– बहाई लेखों से

बहाई धर्म के मंदिर अपने भवन-शिल्प की भव्यता के लिए विख्यात हैं, और दिल्ली में निर्मित बहाई उपासना मंदिर इसी समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाता है। इस मन्दिर की रूपरेखा को अंगीकृत करने से पहले, इसके भवन-शिल्पी, श्री फरिबुर्ज़ साहबा, ने इस देश की भवन-निर्माण कला का अध्ययन करने के लिए भारत का व्यापक भ्रमण किया और वे सौंदर्यपूर्ण मंदिरों की रूपरेखा के साथ-साथ उनकी कला और उनमें अंकित धार्मिक प्रतीकों से बहुत ही प्रभावित हुए। उन्होंने देखा कि उनमें ’कमल’ की एक अहं भूमिका थी। वे इस अनुभव से प्रभावित हुए और बहाई धर्म में निहित विशुद्धता, सरलता एवं नवीनता की अवधारणा को साकार करने के लिए उन्होंने दिल्ली में स्थित ’मंदिर’ की संकल्पना एक कमल के रूप मे की।

बहाई मंदिर पानी पर तैरते हुए और अपनी पत्तियों से आच्छादित एक आधे खिले हुए कमल (अर्द्ध-उन्मीलित पद्म) का आभास देता है। मंदिर के हर घटक की नौ बार आवृत्ति की गई है। इस मंदिर के निर्माण में लंदन के फ्लिंट ऐंड नील पार्टनरशिप ने परामर्शदाता तथा लार्स्न ऐंड टूब्रो लिमिटेड के ईसीसी कंस्ट्रक्शन ग्रुप ने कॉन्ट्रैक्टर की भूमिका निभाई। २६.५ एकड़ भूभाग में विस्तृत इस मंदिर संकुल के अंतर्गत मुख्य उपासना मंदिर, तथा पुस्तकालय, सभागार एवं प्रशासनिक भवन को समाहित करने वाला अनुषंगी प्रखंड शामिल हैं। हाल ही में मंदिर प्रांगण में २००३ में लोकार्पित ’सूचना केंद्र’ तथा २०१७ में उद्घाटित ’शिक्षा केंद्र’ का भी निर्माण किया गया है।

१०,००० वर्गमीटर संगमर्मर की खुदाई ग्रीस से की गई थी और उन्हें इटली में वांछित आकार में काटा-तराशा गया। आवरण – आंतरिक एवं बाहरी आवरणों को विशेष रूप से तैयार किए गए स्टेनलेस स्टील के ब्रैकेट्स और ऐंकर्स का प्रयोग करते हुए इसी संगमर्मर से आच्छादित किया गया है।

कमल की तैरती हुई पंखुड़ियों के परिचायक नौ जलाशयों को घेरते हुए, कमल के चारों ओर घुमावदार अवरोधकों, पुलों और सीढ़ियों से सुसज्जित चल-पथ (वॉक-वे) बने हुए हैं। ये जलाशय सुंदर और नयनाभिराम तो लगते ही हैं, साथ ही वे भवन में वायु-संचार को बनाए रखने में भी सहायक होते हैं।

बाहर से देखने पर, कमल में पंखुड़ियों के तीन समूह दृष्टिगोचर होते हैं और वे सब कंक्रीट के पतले आवरणों से तराशे गए हैं। सबसे बाहरी समूह की नौ पंखुड़ियों, जिन्हें ’प्रवेश पत्तियां’ भी कहा जाता है, बाहर की ओर खुलती हैं और प्रत्येक पंखुड़ी बाहरी मंडलाकार हॉल के चारों ओर नौ ’प्रवेश द्वारों’ की रचना करती है। नौ पंखुड़ियों का एक और समूह है, जिन्हें ’बाहरी पत्तियां’ कहा जाता है, और वे पंखुड़ियां भीतरी भाग की ओर संकेतित करती हैं। ’प्रवेश पत्तियां’ और ’बाहरी पत्तियां’ ये दोनों मिलकर बाह्य हॉल को आच्छादित करती हैं।

नौ पंखुड़ियों के एक तीसरे समूह को ’आंतरिक पत्तियां’ कहा गया है और वे आंशिक रूप से बंद दिखती हैं। किसी अधखिली कली की तरह, केवल उनके ऊपरी छोर खिलते हैं। यह भाग अन्य सबसे उन्नत भाग है और यही उस मुख्य संरचना का निर्माण करता है जिसमें प्रार्थना कक्ष है। शीर्ष के पास, जहां पत्तियां अलग होती हैं, अर्द्धव्यास के आकार में बने हुए नौ धरन (बीम) क्षैतिज रूप से पूरी संरचना को थामे हुए हैं। चूंकि कमल ऊपर की ओर खुला हुआ है इसलिए अर्द्धव्यासाकार धरनों की सतह पर शीशे और इस्पात से बनी हुई एक छत डाली गई है जो वर्षा से रक्षा करती है और प्रार्थना कक्ष में प्राकृतिक प्रकाश को आने देती है।

गर्मियों में हालांकि बाहर का तापमान ४५ डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा हो सकता है मगर अधोसंरचना को घेरने वाले नौ जलाशयों के कारण, जो मंदिर का सौन्दर्य बढ़ाने के अतिरिक्त प्रार्थना कक्ष की सीढ़ियों के अंदर बिछाई गई विभिन्न नलिकाओं के माध्यम से ठंडी हवा भी भीतर आने देते हैं, आंतरिक स्थान अपेक्षाकृत शीतल बना रहता है। इसके अलावा, गुम्बद के पास एक्जॉस्ट फैन भी लगाए गए हैं जो कंक्रीट के आवरण को ठंडा बनाए रखते हैं और मंदिर के अंदर गर्म हवा नहीं आने देते। इसी तरह, कुछ अन्य पंखे प्रार्थना कक्षा की हवा को छानकर ठंडे बेसमेंट (तलघर) में भेज देते हैं जहां उस हवा को शीतल करके वापस भेज दिया जाता है।

आंतरिक गुम्बद में पंखुड़ियों के बीच की तहों से छनकर प्रकाश आता है और पूरे कक्ष में फैल जाता है।

१३०० व्यक्तियों के एकसाथ बैठने की क्षमता के साथ, बहाई मंदिर सभी लोगों का स्वागत करता है। इसके पीछे यह संकल्पना है कि एक ऐसा वातावरण तैयार किया जा सके जिसमें सबको यह लगे कि यह मंदिर उनका है।

बहाई उपासना मंदिर की भौतिक संरचना अधिक से अधिक संख्या में लोगों को उपासना एवं अपने समुदाय की सेवा के लिए लोगों को एकत्रित होने के लिए एक स्थान उपलब्ध कराता है। अतः यह महत्वपूर्ण है कि वह स्थान सबके लिए खुला हो। इसलिए उपासना मंदिर के अंदर भौतिक तामझाम, जैसे मंदिर के भीतर आराधना करना, बहुत ही सरल हैं। सभी मन्दिरों में नौ द्वारों का होना अनिवार्य है जो कि सबका खुले दिल से स्वागत का सूचक है। मंदिर के भीतर कोई भी उपदेश-मंच या वेदिकाएं, चित्र या प्रतीक अथवा मूर्तियां नहीं हैं। बहाई मंदिरों के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे सुंदर हों और इतना अधिक पूर्ण हों जितना कि अस्तित्व के संसार में संभव हो सकता है, ताकि वे उस ’पवित्र सत्ता’ (परमेश्वर) की ओर आकर्षित कर सकें।

बहाई उपासना मंदिर के निर्माण और भवन-शिल्प के बारे में एक डॉक्युमेंट्री

बहाई उपासना मंदिर के भवन-शिल्प के बारे में सचित्र मार्गदर्शिका डाउनलोड करें।

History

१९५३
मंदिर की भूमि का क्रय

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१९५३
आधारशिला रखी गई

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१९८०
मंदिर का निर्माण आरंभ हुआ

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१९८०-१९८६
निर्माण-कार्य जारी

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१९८६
मंदिर का उद्घाटन

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१९८६
जन समान्य अराधना के लिए लोकार्पण

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उद्यान

उपासना मंदिर और उसके अनुषंगी भवन सुंदर उद्यानों और हरे-भरे लॉन से घिरे हुए हैं। इन उद्यानों और लॉनों का रखरखाव पूरी तरह से पुनर्नवीकृत (रीसायकल्ड) जल के प्रयोग से किया जाता है।

पूलसाइड एक्ज़ीविशन

मुख्य भवन के इर्द-गिर्द नौ जलाशय हैं। इनमें फव्वारे लगे हुए हैं जिनका मुख्य उद्देश्य है उपासना मंदिर की शोभा बढ़ाना। इसके अतिरिक्त, ये जलाशय गर्मी के मौसम में प्रार्थना कक्ष के अंदर प्राकृतिक शीतलता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका और कोई आध्यात्मिक महत्व नहीं है। प्रार्थना कक्ष के नीचे तलघर के पास एक ’पूलसाइड एक्ज़ीबिशन’ (प्रदर्शनी) लगाया जाता है जहां बहाई उपासना मंदिर, बहाई धर्म के सिद्धांतों, एक बेहतर विश्व के निर्माण तथा सामाजिक एवं आर्थिक विकास की नई संरचना की दिशा में बहाइयों द्वारा किए जा रहे प्रयासों, इत्यादि के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह एक अच्छा हवादार स्थान है जहां लोग जलाशयों के किनारे अपना कुछ समय बिता सकते हैं।

सूचना केंद्र

सूचना केंद्र मंदिर परिसर में, मुख्य प्रार्थना हाल के पथ पर सीधे जाने पर, उपासना मंदिर के ठीक सामने की दिशा में अवस्थित है। यह केंद्र मुख्य रूप से बहाई उपासना मंदिर और बहाई धर्म के बारे में अधिक गहन जानकारी देने के लिए बनाया गया है।

पुस्तकालय

मंदिर संकुल के अनुषंगी प्रखंड में स्थित पुस्तकालय में 111 भाषाओं में 2000 से भी अधिक विविध बहाई साहित्य का संग्रह है। उनमें बहाउल्लाह, बाब, अब्दुल-बहा, शोगी एफेन्दी, और विश्व न्याय मंदिर की चुने हुए लेख इत्यादि भी शामिल हैं। जो आगंतुक ज्यादा सीखने-समझने को इच्छुक हैं उनके लिए यह पुस्तकालय अध्ययन के उपयुक्त शांत वातावरण प्रदान करता है।

बहाई उपासना मंदिर में पर्यावरण सम्बंधी कई पहलों को कार्यान्वित किया गया है जिनसे जैव-विविधता के संरक्षण, संसाधनों के संरक्षण एवं पुनर्नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग की दिशा में उल्लेखनीय योगदान प्राप्त होता है। इनमें से कई कार्य स्थानीय समुदायों तथा सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों की सहायता से किए गए हैं।

बहाई उपासना मंदिर में,उद्यानों के लिए पानी की व्यवस्था करना एक चुनौतीपूर्ण काम था और इसलिए, सबसे पहले, वर्षाजल को ’हार्वेस्ट’ करने की सुविधाएं स्थापित की गईं। उसके बाद, नगर निगम के अपशिष्ट जल के शोधन के लिए एक मलजल शोधन संयंत्र लगाया गया। यदि ऐसा न किया गया होता तो यह अपशिष्ट जल प्रदूषण का कारण बनता। इन प्रयासों के कारण पर्याप्त पानी मिलने लगा जिनसे इन उद्यानों को हरा-भरा रखने में सहायता मिलती है। एक वर्मिकंपोस्टिंग प्रणाली भी स्थापित की गई जहां बगीचे के अपशिष्टों (खास तौर पर कटी-छंटी घास) को कतारों में रखा जाता है और उन्हें फायबर की एक चादर से ढंक दिया जाता है। उसके बाद कतारों पर कीड़े छिड़क दिए जाते हैं और कतारों को गीला रखा जाता है। समय आने पर, कीड़ों की संख्या बढ़ जाती है और बगीचे के अपशिष्ट पोषक खाद में बदल जाते हैं जिन्हें उर्वरक के रूप में पुनः उद्यान में ही इस्तेमाल किया जाता है।

बाद में, बिजली की आपूर्ति के लिए पूरक स्रोत के रूप में सोलर पैनल संस्थापित किए गए। इस प्रयास के कारण बिजली के खर्चों में ४५ प्रतिशत तक की कमी आई है।